नवबिहार टाइम्स संवाददाता
मसौढ़ी। पटना से सटे मसौढ़ी के धनरूआ के डेवां गांव में पौराणिक परंपरा आज भी जीवंत है. ऐसे में होली की सुबह मिट्टी होली खेलने का रिवाज रहा है, कहते हैं कि मिट्टी होली जमीन से जुड़े रहने की अनुभूति देता है। मसौढ़ी क्षेत्र में रंगों से सब कुछ सराबोर नजर आया. लोग आपस में जश्न मनाते और उत्साहित होते नजर आएं. ऐसे में होली की सुबह मिट्टी होली खेलने की पौराणिक परंपरा रही है. कहा जाता है कि यह मिट्टी से जुड़े रहने की अनुभूति देता है होली. ऐसे में गांव में एक बड़ा सा गड्ढा खोदा जाता है जहां पर सभी मिट्टी घोलकर एक दूसरे को मिट्टी लगते नजर आते।
होली में कई तरह की पौराणिक कथाएं हैं. मान्यताएं है जिसकी संस्कृति और सभ्यता आज भी गांव में जीवंत है क्योंकि ग्रामीण परिवेश में आज भी लोग वही पुराने रिवाज पर होली मनाते आ रहे हैं. फगुआ चढ़ने के 1 महीने पहले से ही हर किसी गांव में फगुआ गीत की ब्यार बहने लगती है उसके बाद होली के दिन पहली सुबह लोग राख होली और मीठी होली खेलते हैं..दोपहर से रंगों के साथ रंग उत्सव मनाते हुए पूरी धरती रंगों से साराबोर हो जाती है. वहीं देर शाम अबीर लगाने का रिवाज होता है. लोग अबीर लगाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं. मसौढ़ी की इस जगह पर पिछले 40 सालों से मिट्टी होली खेलने का रिवाज रहा है. पहले बुजुर्गों ने इसकी शुरुआत की थी उसके बाद आज की नई युवा पीढ़ी मीट्टी होली खेल रही हैं।