प्रो. सुधीर कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में कमेटी गठित
नवबिहार टाइम्स संवाददाता
बोधगया। मगध विश्वविद्यालय प्रशासन ने वित्तीय पारदर्शिता, जवाबदेही और संस्थागत समन्वय को मज़बूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए सभी अंगीभूत महाविद्यालयों के खातों का व्यापक ऑडिट कराने का ऐलान किया है। इस कार्य के लिए विश्वविद्यालय स्तर से विशेष लेखा परीक्षक (ऑडिटर) की नियुक्ति की गई है। कुलपति प्रो. एस.पी. शाही ने कहा कि यह पहल केवल एक वित्तीय सुधार नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय की नई कार्यसंस्कृति की शुरुआत है।
उन्होंने कहा कि हम केवल शैक्षणिक गुणवत्ता में ही नहीं, बल्कि वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता में भी पूरे बिहार में मिसाल कायम करना चाहते हैं। छात्रों से ली गई फीस केवल आंकड़े नहीं, बल्कि महाविद्यालयों के संचालन की जीवनरेखा होती है। हर संस्थान को उसका उचित अधिकार समय पर और पारदर्शी तरीके से मिलना चाहिए। इस प्रक्रिया को निष्पक्ष, त्वरित और तकनीकी रूप से सुसंगत बनाने के लिए विश्वविद्यालय ने एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है।
इस समिति की अध्यक्षता प्रो. सुधीर कुमार मिश्रा, प्राचार्य, एस. सिन्हा कॉलेज, औरंगाबाद करेंगे। उनके साथ प्रो. (डॉ.) सत्येंद्र प्रजापति (प्राचार्य, जगजीवन कॉलेज) एवं प्रो. सतीश सिंह चंद्र (प्राचार्य, गया कॉलेज, गया) को सदस्य बनाया गया है। यह समिति प्रत्येक महाविद्यालय में नामांकन शुल्क सहित समस्त लेन-देन की जांच कर यह सुनिश्चित करेगी कि तय प्रक्रिया के तहत राशि का वितरण हो।
कुलपति ने जोर देकर कहा कि यह कदम विश्वास बहाली का माध्यम बनेगा और विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों के बीच सहयोग व उत्तरदायित्व की भावना को सशक्त करेगा। उन्होंने इसे विश्वविद्यालय की “नई कार्यसंस्कृति” बताते हुए कहा कि तात्कालिकता, पारदर्शिता और तकनीकी दक्षता को अब शासन प्रणाली का अनिवार्य हिस्सा बनाया जा रहा है।
कुलसचिव ने भी सभा को संबोधित करते हुए महाविद्यालयों को आश्वस्त किया कि विश्वविद्यालय उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। उन्होंने कहा कि सभी प्रशासनिक फाइलों का समय पर निष्पादन सुनिश्चित किया जाएगा, ताकि कार्यों में किसी प्रकार की बाधा न आए। कुलसचिव ने सभी उपस्थित प्राचार्यों, लेखापालों और बरसरों को धन्यवाद ज्ञापित कर सभा का समापन किया।
आज की बैठक में मगध विश्वविद्यालय के 19 अंगीभूत महाविद्यालयों के प्राचार्य, लेखापाल एवं बरसर उपस्थित थे, जिन्होंने इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम बताया।