नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
पूर्णिया। बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी गर्मी बढ़ते ही भाजपा में चुनावी रणनीति को लेकर राजनीतिक गलियारों में बहस जोरों पर है। पार्टी इस बार कुछ बड़े नेताओं को सीधे चुनावी अखाड़े में उतारने की योजना पर विचार कर रही है, जिससे मतदाताओं में सक्रियता बढ़े और विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक दबाव बन सके। राजनीतिक विशेषज्ञ इसे NDA की सत्ता में वापसी की रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, इस बार चुनावी मैदान में उतरने वाले संभावित चेहरे पार्टी की ताकत और रणनीति का स्पष्ट संदेश देंगे।
सबसे चर्चित नाम इस बार उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का है। उनका चुनावी मैदान में उतरना पार्टी की मजबूती और वैश्य, अन्य समाजों में उनकी पकड़ को दर्शाता है।
इसके बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल की एंट्री भी निर्णायक मानी जा रही है। उनकी पकड़ और संगठनात्मक क्षमता पार्टी को मजबूत संदेश देने में सक्षम है।
संगठन के अनुभवी नेता मंगल पांडे भी चुनावी अखाड़े में उतर सकते हैं। ब्राह्मण समाज में उनकी पकड़ पार्टी के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। उनके सक्रिय होने से विपक्षी दलों को अपनी रणनीति फिर से परखनी पड़ेगी और ब्राह्मण वोट बैंक भाजपा की ओर आकर्षित हो सकता है।
केंद्रीय नेता और पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे की संभावित एंट्री भी राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। उनकी उपस्थिति से भागलपुर और आसपास के क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ मजबूत होगी और विपक्ष के लिए रणनीतिक चुनौती बढ़ जाएगी। भाजपा की यह रणनीति केवल उम्मीदवारों की सूची तक सीमित नहीं है। बड़े नेताओं की एंट्री के माध्यम से पार्टी विपक्ष पर दबाव बनाना, संगठन और सरकार का तालमेल दिखाना और मतदाताओं के बीच सक्रियता का संदेश देना चाहती है।
भाजपा का यह संभावित चुनावी प्रयोग केवल चर्चा तक सीमित नहीं, बल्कि सियासी भूचाल की तैयारी जैसा प्रतीत होता है। बड़े नेताओं की एंट्री की चर्चाओं के बीच मतदाता, विपक्ष और राजनीतिक पर्यवेक्षक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि पार्टी इस बार हर मोर्चे पर सक्रिय और निर्णायक कदम उठाने के लिए पूरी तरह तैयार है।