नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
औरंगाबाद। बारून प्रखंड के सिरिस गांव स्थित पुनपुन नदी का तट पितृपक्ष में आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां हर वर्ष पितृपक्ष के अवसर पर हजारों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु और पिंडदानी जुटते हैं। पुरानी मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। इसी वजह से गया को विश्वभर में ‘मोक्षधाम’ के रूप में पहचान मिली है।
पुराणों के अनुसार गया की पश्चिमी और उत्तरी सीमा पुनपुन नदी से निर्मित होती है, जिसे आदिगंगा कहा गया है। मान्यता है कि गया आने वाले प्रत्येक पिंडदानी के लिए पुनपुन नदी में पिंडदान अनिवार्य होता है। यही कारण है कि पश्चिम, उत्तर और दक्षिण भारत से सड़क मार्ग से आने वाले श्रद्धालुओं का पहला पड़ाव सिरिस पुनपुन घाट ही होता है। यह स्थल प्रथम पिंडदान का परंपरागत केंद्र है और इसकी धार्मिक महत्ता अत्यधिक है।
लेकिन आस्था के इस प्रमुख स्थल पर मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। सिरिस पुनपुन घाट पर चारों ओर गंदगी का अंबार फैला हुआ है। न तो स्वच्छता की समुचित व्यवस्था है और न ही श्रद्धालुओं के लिए पेयजल, शौचालय, शेड या स्वास्थ्य सुविधा जैसी न्यूनतम आवश्यकताएं उपलब्ध हैं। यहां तक कि अस्थायी मार्गदर्शन केंद्र, पार्किंग व्यवस्था और यातायात प्रबंधन का भी अभाव है, जिसके कारण दूर-दराज से आने वाले लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि सिरिस घाट को मेला स्थल के रूप में विकसित कर पितृपक्ष के दौरान यहां बेहतर व्यवस्था की जाए, तो श्रद्धालुओं को काफी सुविधा होगी। इसके साथ ही बिहार की छवि भी अन्य राज्यों में सुदृढ़ होगी। बेहतर प्रबंधन से यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पितृपक्ष के दौरान गया की धार्मिक महत्ता को देखते हुए सिरिस पुनपुन घाट को स्वच्छ, सुरक्षित और सुविधाजनक बनाना राज्य सरकार और जिला प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि यहां भव्य आयोजन और उचित सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, तो आने वाले वर्षों में सिरिस देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख धार्मिक-पर्यटन केंद्र के रूप में उभर सकता है।