दिव्यांग सहोदर भाईयों के सपनों में आज भी समाज सेवा का भाव
नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
जहानाबाद। जहानाबाद जिले के हुलासगंज बाजार में एक छोटे से संकीर्ण दो कमरे के मकान में गुजर बसर कर रहे दो दिव्यांग भाइयों जयराम केसरी और उमानाथ केसरी के जज्बे की कहानी से सभी लोग प्रभावित हैं लेकिन बुजुर्ग पिता को यह भय भी अंदर अंदर सताये जा रहा है कि उनके जीवन के बाद उनके दोनों दिव्यांग बेटों का आखिर सहारा कौन बनेगा? पैसे के अभाव में ही उनकी दृष्टि उन्हें वापस नहीं दिला सका। यह बताते हुए बुजुर्ग पिता सुदामा केसरी की आंखों से आंसू की धारा टपक जाती है।
आंखों से दिव्यांग होने के बावजूद कुछ बनने के सपने लिए दिन-रात दोनों दिव्यांग भाई जयराम केसरी और उमानाथ केसरी पढ़ाई में 8- 8 घंटे जुटे रहते हैं। समाज से भले ही उन्हें कोई आसरा नहीं मिला हो लेकिन आज भी दोनों भाइयों के मन में देश और समाज के लिए कुछ करने का जज्बा साफ-साफ दिखता है। स्थानीय बाजार में गूगल बॉय के नाम से मशहूर जयराम केसरी अभी स्नातक की पढ़ाई कर रहा है। भविष्य में आईएएस बनने का सपना लिए जयराम केसरी के मन में दिव्यांगता का कोई दर्द या सिकन चेहरे पर भले नहीं दिखता हो लेकिन आज भी आंखों में जलन और पीड़ा से उसे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
दूसरे दिव्यांग भाई उमानाथ केसरी का उम्र 22 वर्ष हो चुका है वर्तमान में कामता प्रसाद शर्मा स्नातक कॉलेज से सत्र भूगोल विषय से स्नातक तक पढ़ाई करने के बाद प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में जुटा है। उसे भी कुछ अच्छा बनकर समाज सेवा करना है तथा अपने जैसे दिव्यांग लोगों की सहायता भी करनी है। समाज सेवा की सोच रखने वाला उमानाथ केसरी के मन में जल्द से जल्द आत्मनिर्भर बनने की उत्कंठा भी है क्योंकि वह पिता के कठिन परिश्रम को देखकर उनके लिए भी कुछ करना चाहता है।
सुदामा केसरी का मानना है कि आज भी समुचित इलाज हो तो शायद उनके बेटों के आंखों की रोशनी पुनः वापस लाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि दिल्ली के एम्स अस्पताल और चेन्नई के शंकर नेत्रालय में भी इन्होंने अपने बेटे को इलाज कराने का प्रयास किया लेकिन पैसा नहीं होने के कारण वह अपने दोनों बच्चों को दिव्यांग के रूप में देखने को विवश है। अब ऐसे में देखना होगा कि दो दिव्यांग भाइयों के लिए क्या सचमुच ऐसे लोग सामने आते हैं जो उनके नयन में रोशनी भर कर उन्हें एक नई जीवन दे सकते हैं। बहरहाल दोनों भाइयों के हौसलों के उड़ान से आसपास के सभी लोग आज भी दांतों तले उंगलियां दबाने को विवश हैं।