नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
औरंगाबाद। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का तीसरा चरण कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हुआ। इस बार मतदाताओं ने जिस उत्साह और शांति के साथ लोकतंत्र के इस महापर्व में भागीदारी निभाई, उसने यह साबित कर दिया कि अब जनता हिंसा और भय के साए से बाहर लोकतंत्र की राह पर बढ़ना चाहती है। शहर की गलियों से लेकर दक्षिण के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में बसे गांवों तक हर जगह लोकतंत्र का उत्सव देखने को मिला।

इस बार औरंगाबाद में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ, यह ऊंचा आंकड़ा है। उल्लेखनीय है कि जहां पहले नक्सल प्रभावित इलाकों में मतदान के दिन सन्नाटा पसरा रहता था, वहीं इस बार वही इलाका मतदाताओं की कतारों से गुलज़ार रहा। किसी भी नक्सली संगठन ने न तो चुनाव बहिष्कार की घोषणा की और न ही मतदान में बाधा डालने की कोशिश की। यह परिवर्तन इस बात का प्रमाण है कि लोकतंत्र की जड़ें अब राज्य के सबसे कठिन इलाकों तक गहराई से फैल चुकी हैं।

पूरे जिले में मतदान पूरी तरह शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। केंद्रीय सुरक्षा बलों की कड़ी निगरानी और प्रशासन की सजगता ने यह सुनिश्चित किया कि मतदाता निर्भीक होकर मतदान केंद्रों तक पहुंचे। हालांकि सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम थे, लेकिन माहौल में तनाव की जगह उत्सव का रंग था। मतदाता सुबह से ही अपने-अपने केंद्रों पर पहुंचने लगे। कोई बच्चों का हाथ थामे आया, तो कोई बुजुर्ग छड़ी के सहारे वोट डालने पहुँचा। सभी के चेहरों पर संतोष और गर्व की झलक थी।

इस बार निर्वाचन आयोग द्वारा कई छोटी-छोटी सुविधाओं का भी ध्यान रखा गया था जिसे लोगों ने काफी सकारात्मक रूप से लिया. उदाहरण के तौर पर लोगों को मतदान केंद्र में मोबाइल ले जाने की छूट नहीं है परंतु दिक्कत तब आती थी कि जब कोई अकेला मतदाता मतदान करने जाता था तो समझ नहीं पाता था कि अपना मोबाइल कहां छोड़े. इस बार मोबाइल संभालने के लिए एक विशेष कर्मी की प्रतिनियुक्ति मतदान केंद्र पर की गई थी जो वोट देने वाले मतदाताओं का मोबाइल संभाल रहा था।

इस बार महिलाओं की भागीदारी भी उल्लेखनीय रही। कई मतदान केंद्रों पर पुरुषों से अधिक संख्या में महिलाएं कतारों में नजर आईं। आंगनबाड़ी केंद्रों की कर्मियों की तैनाती ने महिला मतदाताओं के लिए मतदान को और सुगम बना दिया। उन्होंने आत्मविश्वास के साथ वोट डाला और कहा कि अब वे अपने इलाके के विकास के फैसले में सीधे तौर पर भागीदारी चाहती हैं।

गांवों में भी वही उत्साह देखने को मिला जो शहरों में था। धूल भरी पगडंडियों से गुजरते हुए लोग मतदान केंद्रों तक पहुंचे और गर्व से उंगली पर स्याही का निशान दिखाते हुए लौटे। चुनाव का यह शांतिपूर्ण और उत्सवमय रूप केवल लोकतंत्र की परिपक्वता का प्रमाण है. औरंगाबाद का यह अनुभव इस बात का संकेत है कि लोकतंत्र अब सचमुच जनता का उत्सव बन चुका है जहां मतदाता मतदाता से नहीं, बल्कि बेहतर बिहार की उम्मीद से मुकाबला कर रहा है।