नवबिहार टाइम्स की पहल पर सरकार ने किया विरासत वृक्ष घोषित
नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
औरंगाबाद। बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित लगभग 500 साल पुराने विशाल वटवृक्ष को अब राज्य सरकार द्वारा विरासत वृक्ष घोषित कर दिया गया है। यह निर्णय बिहार जैव विविधता परिषद द्वारा हाल ही में की गई भौतिक जांच और पुष्टि के बाद लिया गया है। उल्लेखनीय है कि इस वृक्ष की खोज नवबिहार टाइम्स की टीम ने कुछ माह पूर्व की थी। विशेषज्ञों से राय और जांच के बाद इसकी आयु लगभग पांच शताब्दी आंकी गई, जो इसे बिहार का सबसे पुराना वृक्ष बनाती है। यह प्राचीन वटवृक्ष मदनपुर प्रखंड के दक्षिणी उमगा पंचायत स्थित सहियारी टोले के समीप स्थित है। समय और मौसम की तमाम मार झेलकर यह वृक्ष अब एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तित हो चुका है, जिसकी जड़ें और शाखाएं एक एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैली हुई हैं। मुख्य तने से उपजी शाखाओं और उनसे नीचे उतरती सहायक जड़ों ने इसे अपने आप में एक छोटे जंगल में तब्दील कर दिया है।
सरकारी पहचान से पूर्व यह वृक्ष गुमनामी में था और बिना किसी संरक्षण के अपने प्राकृतिक विस्तार में व्यस्त रहा। अब इसे संरक्षित घोषित किए जाने के बाद इसके दीर्घकालिक संरक्षण और संवर्धन की दिशा में कदम उठाए जाएंगे। देश में कोलकाता का आचार्य जगदीश चंद्र बोस बोटैनिकल गार्डन, प्रयागराज का अक्षय वट, उज्जैन का सिद्ध वट जैसे कई प्रसिद्ध वटवृक्ष पहले से ही पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। औरंगाबाद का यह वटवृक्ष अब इस गौरवशाली परंपरा की कड़ी में न केवल शामिल हुआ है, बल्कि अपनी उम्र और विशालता के आधार पर सबसे प्रमुख स्थान पा गया है। यह उपलब्धि न केवल औरंगाबाद, बल्कि पूरे बिहार के लिए गर्व की बात है और राज्य के जैविक एवं सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी।
तकनीकी सहयोग से संरक्षित होगा बिहार का 500 साल पुराना वटवृक्ष
राज्य का सबसे पुराना विरासत वृक्ष घोषित किए गए औरंगाबाद जिले के सहियारी टोला स्थित 500 वर्षीय वटवृक्ष को अब आधुनिक तकनीक की मदद से संरक्षित किया जाएगा। बिहार जैव विविधता परिषद और राज्य पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग संयुक्त रूप से वृक्ष के दीर्घकालिक संरक्षण की योजना पर कार्य कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार, इस वृक्ष की जियो टैगिंग और डिजिटल मैपिंग की प्रक्रिया जल्द ही शुरू की जाएगी ताकि इसके भौगोलिक विस्तार, स्वास्थ्य और जैव विविधता का नियमित निगरानी की जा सके। इसके लिए ड्रोन सर्वे, 3डी स्कैनिंग और हाई-रेजोल्यूशन इमेजरी तकनीक का उपयोग किया जाएगा। इसके माध्यम से वृक्ष के मुख्य तने, शाखाओं, सहायक जड़ों और उसके इकोसिस्टम की संपूर्ण जानकारी डिजिटल रूप में संग्रहित की जाएगी। इसके अतिरिक्त, वटवृक्ष के चारों ओर संरक्षण क्षेत्र विकसित किया जाएगा, जहाँ फेंसिंग, जल संरक्षण, पौध संरक्षण और जैविक मल्चिंग जैसी गतिविधियाँ की जाएंगी। वृक्ष के नीचे और आसपास के क्षेत्र में जैव विविधता के अन्य तत्वों जैसे पक्षियों, कीटों और छाया प्रेमी वनस्पतियों के संरक्षण हेतु विशेष योजना बनाई जा रही है।
राज्य सरकार इस वृक्ष को प्राकृतिक धरोहर स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में भी विचार कर रही है ताकि यह आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति से जुड़ाव और संरक्षण का संदेश दे सके। इसके लिए सूचना बोर्ड, डिजिटल क्यूआर कोड आधारित जानकारी और स्थानीय स्कूलों व कॉलेजों के लिए शैक्षणिक भ्रमण की व्यवस्था भी प्रस्तावित है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह वृक्ष न केवल पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अहम है बल्कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भी इसकी भूमिका अहम हो सकती है। ऐसे में इसे तकनीकी सहायता से संरक्षित करना एक दूरदर्शी कदम माना जा रहा है। इस पहल के तहत नवबिहार टाइम्स की भूमिका को भी सरकार सराहना की दृष्टि से देख रही है, जिसने इस वृक्ष को गुमनामी से बाहर लाकर राज्य की जैविक धरोहर के केंद्र में स्थापित किया।
इको-पर्यटन को मिलेगा नया आयाम, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी होगा लाभ
विरासत वृक्ष घोषित किए जाने के बाद अब यह स्थल इको-पर्यटन के नए केंद्र के रूप में उभरने की संभावना जता रहा है। अपनी प्राकृतिक भव्यता, पारिस्थितिकीय संतुलन और ऐतिहासिक महत्त्व के कारण यह वृक्ष पर्यटकों, शोधार्थियों और प्रकृति प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है। अगर इस क्षेत्र को इको-पर्यटन जोन के रूप में विकसित किया जाए, जहां प्रकृति संरक्षण के साथ-साथ पर्यटकों के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे विश्राम स्थल, व्याख्या केंद्र, वॉच टॉवर, पैदल पथ और गाइडेड टूर की व्यवस्था हो, वृक्ष की डिजिटल जानकारी देने के लिए क्यूआर कोड और इंटरएक्टिव डिस्प्ले लगाए जाएं , जिससे लोग इसके ऐतिहासिक और जैविक महत्त्व को समझ सकें तब यह प्रयास स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगा।
ग्रामीण युवाओं को गाइडिंग, होमस्टे, हस्तशिल्प और स्थानीय उत्पादों की बिक्री से आय का साधन मिलेगा। इससे न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, बल्कि लोगों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ेगी। शैक्षणिक संस्थानों के लिए यह वृक्ष एक जीवंत प्रयोगशाला जैसा होगा, जहाँ जैव विविधता, पारिस्थितिकी, और पर्यावरण शिक्षा को प्रत्यक्ष अनुभव के रूप में समझाया जा सकेगा। पर्यटन विभाग और जैव विविधता परिषद की संयुक्त पहल से यह क्षेत्र भविष्य में बिहार के प्रमुख इको-पर्यटन स्थलों में शुमार हो सकता है।