.कार्यालय से अक्सर गायब रहते हैं भवन निर्माण विभाग, औरंगाबाद के कार्यपालक अभियंता
नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
औरंगाबाद। एक ओर जहां औरंगाबाद की तमाम पुरानी सरकारी इमारतें रखरखाव के अभाव में जानलेवा नजर आ रही है वहीं इनके रखरखाव के लिए जिम्मेदार भवन निर्माण विभाग के अधिकारी बेखबर सोते नजर आ रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि इन भवनों की मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपए के व्यय का आखिर हो क्या रहा है जबकि यह भवन खतरनाक बने हुए हैं। हाल की घटना जिसमें समाहरणालय के छज्जे का भाग दिनदहाड़े ढह गया था, भवन निर्माण विभाग के कामकाज पर सवालिया निशाना लग रहा है। इस घटना में जिला योजना पदाधिकारी अविनाश प्रकाश बुरी तरह घायल हो गए थे जिन्हें अस्पताल ले जाकर उनका इलाज कराना पड़ा। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि जितना बड़ा छज्जा ढहा था वह अगर किसी के सिर पर सीधा गिरता तो उसकी मौत निश्चित थी। इसी प्रकार कुछ हफ्ते पूर्व सिविल कोर्ट परिसर में एक न्याय कक्ष की छत ढह गई थी। यह तो गनीमत थी कि उसे वक्त वहां कोई मौजूद नहीं था वरना किसी की मौत भी हो सकती थी। इन दोनों घटनाओं ने भवन निर्माण विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। सूत्रों का कहना है कि भवन निर्माण विभाग अपने कार्यों के प्रति जरा भी जिम्मेदार नहीं है और जिले के अधिकतर सरकारी भवनों की स्थिति अत्यंत जर्जर है। बिल्कुल नए बने भवनों की बात छोड़ दें तो जितने पुराने भवन हैं उनमें से अधिकतर की हालत खराब है। इनकी मरम्मत के नाम पर बड़ी रकम आती है लेकिन जिस तरह की घटनाएं घटी है उसे स्पष्ट जाहिर है की मरम्मत के नाम पर पैसे का वारा न्यारा किया जा रहा है। समाहरणालय भवन की हर साल मरम्मत के नाम पर बड़ी रकम खर्च दिखाई जाती है लेकिन उसी समाहरणालय भवन का हाल यह है कि उसके हिस्से जानलेवा बन रहे हैं। कुछ अधिकारियों का कहना है कि कार्यपालक अभियंता और सहायक अभियंता सहित लगभग सारे जिम्मेदार पदाधिकारी कार्यालय से अक्सर गायब रहते हैं। कार्यालय में जाने पर उनसे कभी मुलाकात नहीं होती और कहा जाता है कि वह फील्ड में है लेकिन ऐसा होता नहीं। वह फील्ड में भी नहीं रहते बल्कि पटना के अपने आवास से ही कार्यालय चलाते हैं। अगर अधिकारी फील्ड में रहते और मरम्मत कार्य की देखभाल अपने स्तर से करते तो शायद औरंगाबाद के सरकारी भवन खतरनाक नहीं होते। सूत्रों का कहना है कि अधिकारी केवल बैठकों में शामिल होने के लिए औरंगाबाद आते हैं और कभी-कभी जिलाधिकारी की बैठकों से भी भवन निर्माण विभाग के अधिकारी गायब रहते हैं। विभाग के उच्चाधिकारियों तथा जिला प्रशासन को भवनों के इस प्रकार टूट कर गिरने के मामलों को गंभीरता से लेने की जरूरत है और इसके साथ ही भवन निर्माण विभाग के अधिकारियों की मनमानी पर नकेल डालने की भी जरूरत है ताकि भविष्य में सरकारी भवन से कोई बड़ा हादसा ना हो जाए। सरकारी भवनों के मरम्मत के लिए जो राशि आ रही है उसका सही ढंग से उपयोग हो और भवनों की सही तरीके से मरम्मत कराई जाए। खतरनाक होते सरकारी भवनों के बारे में जब भी भवन निर्माण विभाग के अधिकारियों का पक्ष जाने की कोशिश की गई तो वह कार्यालय से अनुपस्थित मिले और दूरभाष पर भी बार-बार संपर्क करने के बावजूद उनसे संपर्क न हो सका। सूत्रों का कहना है कि वह सिर्फ अपने चहेते ठेकेदारों अथवा विभागीय अधिकारियों का ही फोन रिसीव करने में रुचि रखते हैं।