मगध विश्वविद्यालय में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम
नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
बोधगया। मगध विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग (स्नातकोत्तर) एवं परामर्श प्रकोष्ठ ने आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (आईक्यूएसी) के सहयोग से विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस-2025 पर विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया। इस वर्ष की थीम “चेंजिंग द नरेटिव ओन सुसाईड” रही, जिसका उद्देश्य आत्महत्या जैसे संवेदनशील विषय पर चुप्पी तोड़ना, कलंक कम करना और जिम्मेदार संवाद को बढ़ावा देना था। कार्यक्रम की शुरुआत येलो रिबन अभियान से हुई, जिसका संयोजन डॉ. प्रगति चतुर्वेदी और प्रभात रंजन ने किया। सबसे पहले कुलपति प्रो. एस. पी. शाही को पीला रिबन पहनाया गया और इसके बाद विश्वविद्यालय के अधिकारी, अधिष्ठाता, शिक्षक और गैर-शिक्षण कर्मियों ने भी इस अभियान में भाग लिया।
अपने संदेश में कुलपति प्रो. शाही ने कहा कि आत्महत्या केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बल्कि सामाजिक समस्या है, जिसका समाधान सामूहिक जिम्मेदारी से ही संभव है। उन्होंने संस्थानों को ऐसा वातावरण तैयार करने की आवश्यकता बताई, जहाँ विद्यार्थी सुरक्षित, मूल्यवान और मानसिक रूप से समर्थ महसूस करें। इसके बाद ज़ूम प्लेटफार्म पर राष्ट्रीय वेबिनार “फ्रॉम साइलेंस टू रिस्पॉन्सिबिलिटी: रीडिफाइनिंग हाउ सोसाइटी टॉक्स अबाउट सुसाईड” आयोजित हुआ, जिसमें 300 से अधिक विद्यार्थी, शोधार्थी, शिक्षाविद और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ जुड़े। वेबिनार का संचालन आयोजन सचिव डॉ. हिमालय तिवारी ने किया। स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष प्रो. सुनीति सुमन ने दिया और विषय का परिचय डॉ. मीनाक्षी ने प्रस्तुत किया।
मुख्य व्याख्यान जीएलए विश्वविद्यालय मथुरा के कुलपति प्रो. अनूप गुप्ता ने दिया। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए सहयोगी माहौल उपलब्ध कराएं। कार्यक्रम में कुलसचिव डॉ. बी. के. मंगलम, अधिष्ठाता प्रो. आर. एस. जमुआर और आईक्यूएसी समन्वयक सहित अन्य वक्ताओं ने भी आत्महत्या रोकथाम में सहानुभूति, संवाद और सामूहिक जिम्मेदारी की महत्ता पर प्रकाश डाला। अंत में डॉ. प्रियंका सिंह ने आभार ज्ञापन दिया और कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
इस अवसर पर विभिन्न विभागों के शिक्षक, शोधार्थी और परामर्श प्रकोष्ठ के सदस्य भी सक्रिय रूप से शामिल रहे। यह पहल न केवल आत्महत्या रोकथाम जैसे गंभीर विषय पर सार्थक विमर्श की नींव बनी, बल्कि विश्वविद्यालय की सामाजिक उत्तरदायित्व और शैक्षणिक उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता को भी मजबूत रूप से रेखांकित करती है।