नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
औरंगाबाद। विश्व हृदय दिवस के मौके पर बिहार के प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ बी. के. सिंह ने कहा कि आज हृदय रोग केवल उम्रदराज लोगों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि युवा वर्ग भी इसकी चपेट में तेजी से आ रहा है। उन्होंने कहा कि अनियमित दिनचर्या, फास्ट फूड की आदत, तनाव और शारीरिक गतिविधियों की कमी हृदय को समय से पहले ही कमजोर बना रही है।
डॉ सिंह ने कहा, “हमारे देश में हर चार में से एक मौत हृदय रोग की वजह से होती है। यह आंकड़ा चिंताजनक है, लेकिन अच्छी बात यह है कि हृदय रोग का 80 प्रतिशत खतरा केवल जीवनशैली में सुधार कर टाला जा सकता है। लोगों को यह समझना होगा कि रोकथाम इलाज से कहीं बेहतर और आसान है।” उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि हृदय को स्वस्थ रखने के लिए पांच बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिसमें संतुलित आहार प्रमुख है। भोजन में हरी सब्जियाँ, मौसमी फल, साबुत अनाज और कम तेल-नमक का उपयोग करें।
तले-भुने और जंक फूड से परहेज करें। नियमित व्यायाम जरूरी है। प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे की वॉकिंग, योग या हल्का व्यायाम करें। व्यायाम न केवल हृदय बल्कि पूरे शरीर की कार्यक्षमता बढ़ाता है। तनाव प्रबंधन भी महत्वपूर्ण कारक है। भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव से बचना मुश्किल है, लेकिन ध्यान, संगीत, किताब पढ़ने या परिवार के साथ समय बिताने से तनाव कम किया जा सकता है। 30 वर्ष की उम्र के बाद हर व्यक्ति को साल में कम से कम एक बार ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और शुगर की जांच करानी चाहिए। हानिकारक आदतों से दूरी भी जरूरी है। धूम्रपान और शराब हृदय की सबसे बड़ी दुश्मन हैं। इनसे पूरी तरह दूरी बनाना जरूरी है।
डॉ सिंह ने कहा, “हृदय रोग का सबसे बड़ा खतरा यह है कि इसके शुरुआती लक्षणों को लोग गंभीरता से नहीं लेते। अक्सर सीने में दर्द, थकान, सांस फूलना या बेचैनी को नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि ये संकेत तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेने की ओर इशारा करते हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि ग्रामीण इलाकों में हृदय रोग की पहचान और इलाज को लेकर अभी भी जागरूकता की भारी कमी है। “गांव के लोग अक्सर तब तक इलाज के लिए नहीं आते जब तक हालत गंभीर न हो जाए। हमें प्राथमिक स्तर पर ही जागरूकता फैलानी होगी और लोगों को यह समझाना होगा कि समय पर जांच और इलाज से हृदय रोग की जटिलता से बचा जा सकता है।”
अंत में डॉ बी. के. सिंह ने कहा कि हृदय रोग केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि सामाजिक चुनौती भी है। “अगर हम आज से अपनी आदतें बदल लें, तो आने वाली पीढ़ियों को भी एक स्वस्थ भविष्य दे सकते हैं। जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव ही लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन का सबसे बड़ा आधार हैं।