नवबिहार टाइम्स संवाददाता
हिसुआ। लोक आस्था का महापर्व छठ पर गुरुवार की शाम भगवान सूर्य को पहला अर्घ्य दिया गया। इसी तरह शुक्रवार को सुबह का अर्ध्य देने के बाद अरुणोदय में छठ व्रत का समापन किया जाएगा। पहला अर्घ्य देने के लिए शाम को तालाबों एवं नदी घाटों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। इस दौरान पारंपरिक लोक गीत गूंजते रहे। श्रद्धालुओं ने अस्ताचल भगवान सूर्य को तालाब एवं नदी के किनारे विधि विधान एवं मंत्रोच्चार के साथ जल अर्पित किया गया। तालाबों एवं नदी घाटों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने अस्ताचल भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया और वैदिक रीति से पूजा-अर्चना की। तालाब किनारे पूजा स्थल पर छठ पूजा के पारंपरिक लोक गीत गूंजते रहे।
हिसुआ प्रखंड नगर परिषद क्षेत्र के तालाबों में अस्ताचल सूर्य को अर्ध्य दिया गया। हिसुआ के तमसा नदी, नरहट के झिकरूआ मंदिर समेत अन्य घाटों पर रंगीन रौशनी से नहाए हुए है। इसी तरह पुलिस प्रशासन की ओर से तालाबों पर सुरक्षा के लिए जवान तैनात किए गए हैं। इसके पहले व्रतियों ने बुधवार की शाम भगवान सूर्य की अराधना की और खरना किया था। खरना के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो गया। पर्व के चौथे और अंतिम दिन यानी शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद श्रद्धालुओं का व्रत पूरा हो जाएगा। इसके बाद व्रती अन्न और जल ग्रहण करेंगे।
छठ लोक आस्था और प्रकृति पूजा के उत्कृष्ट महापर्व के रूप में पहचान बना चुका है। यह एक ऐसा प्रकृति पर्व है, जिसकी सारी परंपराएं कुदरत को बचाने, बढ़ाने और उनके प्रति कृतज्ञता जताने का संदेश देती है। इस पर्व में सबसे पहले साफ-सफाई और पवित्रता पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है। घरों से लेकर घाटों तक की सफाई होती है। सूर्य को जल और दूध अर्पण करने के अतिरिक्त ऐसी कोई भी चीज विसर्जित नहीं की जाती, जो नदियों में प्रदूषण बढ़ाए। यह दुनिया का इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें न सिर्फ उगते हुए बल्कि डूबते सूर्य की भी अराधना की जाती है।