नवबिहार टाइम्स की पहल ने इस हरित गाथा को दी एक नई उम्मीद
नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
औरंगाबाद। जिले के मदनपुर प्रखंड के सुदूरवर्ती इलाके में खड़ा वह महावटवृक्ष, जो पांच शताब्दियों का मौन साक्षी है, आज भी अपनी हर शाखा और पत्ते में समय की अनगिनत कहानियों को समेटे हुए है। लगभग एक एकड़ भूमि पर फैला यह विशाल बरगद का पेड़ न केवल अपनी भव्यता से चमत्कृत करता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का एक अमूल्य संदेश भी देता है। अपने औषधीय गुणों और वैज्ञानिक महत्व के कारण यह वृक्ष प्रकृति की गोद में बसा एक जीवंत स्मारक है, जो अब संरक्षण और संवर्धन के लिए मानव संवेदनशीलता की प्रतीक्षा कर रहा है।
नवबिहार टाइम्स की पहल और वन एवं पर्यावरण मंत्री की घोषणा ने इस हरित गाथा को एक नई उम्मीद दी है। जब आप मानव इतिहास के संघर्ष पूर्ण सफर के इस मूक साक्षी की सशक्त शाखाओं, घने हरे वितान के नीचे खड़े होते हैं तो यह कल्पना रोमांचित कर देती है कि मानवता के इस साक्षी ने 16वीं सदी में मुगल काल की शुरूआती आहटें देखी होंगी। इसने अकबर और जहांगीर का दौर देखा होगा, ईस्ट इण्डिया कंपनी के नुमाइंदों की पहली चहलकदमी से लेकर ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार देखा होगा और यह मूक साक्षी है भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम का भी।
प्रकृति का यह अनुपम प्राचीन उपहार बिहार के औरंगाबाद के मदनपुर प्रखंड अंतर्गत दक्षिणी उमगा पंचायत के सहियारी टोले के समीप अपनी पूरी भव्यता से समय और मौसम के प्रहारों, प्राकृतिक आपदाओं को झेलता खड़ा है जहां अब इस अकेले महावटवृक्ष ने पूरे के पूरे जंगल का रूप ले लिया है। इसके मुख्य तने से निकलीं विशाल शाखाएं और शाखाओं से उभरी सहायक जड़ों ने खुद का एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित कर लिया है जो एक एकड़ से ज्यादा भूमि पर विस्तृत है। यहां गौरतलब है कि नवबिहार टाइम्स की नज़र पड़ने से पहले हमारा ये पुरखा बिना किसी संरक्षण के अपना विस्तार करता रहा है और आज अकेले इस पेड़ के पास पहुंचने पर जंगल का एहसास होता है।
इस महावटवृक्ष की प्राचीनता और विशालता ने इसके इर्द-गिर्द कई लोक कथाओं, आस्थाओं और परम्पराओं को विकसित कर दिया है। आसपास के ग्रामीण इसे जीवित देवता मान कर पूजते रहे हैं जिनकी कई पीढ़ियों ने इस महावटवृक्ष से लाभ प्राप्त किया है। ग्रामीण जितेंद्र भुइयां, छोटू कुमार, देवांती देवी एवं रजंती देवी का कहना है कि यह पेड़ इतना पुराना है कि उनके दादा-परदादाओं के भी दादा-परदादाओं के जमाने से इसकी चर्चा होती आई है। गांव में खुशी का पल हो या कोई धार्मिक अनुष्ठान, गांव वाले इस प्राचीन वृक्ष की पूजा करना नहीं भूलते।
मान्यता है कि इस वट वृक्ष के पत्तों को तोड़ उससे निकलने वाले दूध को आंखों में डालने से आंख की बीमारियां ठीक हो जाती हैं। वैसे भी वटवृक्ष हमारी संस्कृति में बेहद आदरणीय रहे हैं और उनके औषधीय लाभों को आयुर्वेद जैसी प्राचीन चिकित्सा पद्धति ने बखूबी समझा है।