औरंगाबाद/डिहरी ऑन-सोन। नवबिहार टाइम्स संवाददाता
काराकाट संसदीय क्षेत्र में एनडीए के वोटों के बड़े पैमाने पर बिखराव ने सीपीआई (एमएल) के उम्मीदवार राजाराम सिंह को आसानी से इस क्षेत्र से संसद में पहुंचा दिया है। अगर एनडीए के वोटों का बिखराव नहीं होता तो राजाराम सिंह भारी अंतर से चुनाव हार जाते। दूसरी ओर जबरदस्त भीतरघात से उपेन्द्र कुशवाहा को नुकसान हुआ। यहां सीपीआई (एमएल) के उम्मीदवार राजाराम सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय उम्मीदवार पवन सिंह को 380581 वोट पाकर 104199 वोटों से हराया। पवन सिंह को 274723 वोट मिले, जबकि एनडीए के उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा कुल 253876 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
अगर पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के वोटों को जोड़ दिया जाए तो यह सीपीआई (एमएल) को मिले कुल वोटों से कहीं ज्यादा है। यह तथ्य ही इस बात का अंदाजा देता है कि वोटों के बिखराव से सीपीआई (एमएल) को कितना फायदा हुआ। बीजेपी के बागी उम्मीदवार और भोजपुरी स्टार पवन सिंह के काराकाट में उतरते ही लगा कि एनडीए को नुकसान होगा। इस नुकसान की भरपाई के लिए एनडीए ने तमाम कोशिशें की और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आदि को काराकाट में चुनाव प्रचार के लिए लाया गया लेकिन ये कोशिशें पवन सिंह को रोकने में नाकाम रहीं।
दूसरी ओर उपेन्द्र कुशवाहा की हार के पीछे और पवन सिंह के इस प्रदर्शन के पीछे बहुत से राजनीतिक विश्लेषक भीतरघात के संकेत साफ देख रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि बिना किसी संगठन और क्षेत्र के पूर्व परिचय के पवन सिंह का ये प्रदर्शन अप्रत्याशित है। कई स्थानीय नेता उपेन्द्र कुशवाहा के इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने को लेकर खुन्नस पाले दिख रहे थे और कई ने खुलेआम उनके खिलाफ अभियान चलाया। कई नेताओं के खासमखास समर्थकों ने सोशल मीडिया पर पवन सिंह के समर्थन तथा उपेन्द्र कुशवाहा के विरोध में बाकायदा कैम्पेन भी चलाया क्योंकि शुरू से ही ये साफ था कि पवन सिंह मुख्यतरू एनडीए के वोट बैंक में ही सेंध लगायेंगे।
एक और बड़ा फैक्टर ये है कि 2020 से दक्षिण पश्चिम बिहार का इलाका महागठबंधन के लिए गढ़ साबित हो रहा है। विधानसभा चुनाव में भी एनडीए गठबंधन को इस पूरे इलाके में एक भी सीट नहीं मिली थी और यही स्थिति इस बार के लोकसभा चुनाव में भी है जहां आरा, बक्सर, सासाराम, औरंगाबाद, काराकाट और जहानाबाद के साथ पाटलिपुत्र सीट भी महागठबंधन के खाते में चली गई। खुद काराकाट की सभी विधानसभा सीटें महागठबंधन के कब्जे में है। ऐसे में एनडीए यहां की इस बदलती सामाजिक राजनीतिक परिस्थिति को समझने में विफल रहा।