फिर सज गई गुमटी नंबर एक के पास फल-सब्जी मंडी, अवैध दुकानों की वापसी से उठे सवाल
नवबिहार टाइम्स ब्यूरो
गया। गया जंक्शन के डेल्हा साइड स्थित एक नंबर रेल गुमटी के पास रेलवे भूमि पर एक बार फिर अवैध रूप से फल और सब्जी की मंडी सज गई है। महज दो सप्ताह पहले, 6 जून को रेलवे प्रशासन द्वारा बड़े पैमाने पर की गई अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई अब सवालों के घेरे में है। रिपोर्ट तो मुख्यालय भेज दी गई थी, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कह रही है। बुधवार को जब उक्त स्थल का जायजा लिया गया तो पाया गया कि लगभग 40 से अधिक दुकानें, जिनमें फल, सब्जी, मांस-मछली, चाय-पान व नाश्ता की दुकानें शामिल हैं, पहले की ही तरह फिर से संचालित हो रही हैं। स्थानीय लोग इसे “जैसे कुछ हुआ ही नहीं” की स्थिति बता रहे हैं।
मिलीभगत का आरोप, ठेके के नाम पर होती है वसूली
स्थानीय नागरिकों ने आरोप लगाया कि यहां दुकानें लगाने के लिए अघोषित रूप से एक व्यक्ति को “ठेका” दिया गया है, जो प्रति दुकान हर महीने एक तयशुदा राशि वसूलता है। बताया गया कि इस अवैध वसूली से हर महीने 25 से 30 हजार रुपये की कमाई होती है, जो पूरी तरह गैरकानूनी है और गोपनीय ढंग से किया जाता है।
आरपीएफ की भूमिका पर सवाल
रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण रोकने और उसे हटाने की जिम्मेदारी रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की होती है। गया जंक्शन पर आरपीएफ पोस्ट प्रभारी निरीक्षक के साथ-साथ सहायक कमांडेंट की भी पदस्थापना है। इसके बावजूद अवैध दुकानें आरपीएफ की नजरों से “ओझल” कैसे रह गईं, यह एक बड़ा सवाल बन गया है।
6 जून को हुआ था अभियान, अब सब कुछ यथावत
उल्लेखनीय है कि 6 जून को आरपीएफ पोस्ट प्रभारी निरीक्षक बनारसी यादव, वाणिज्य पर्यवेक्षक शैलेश कुमार, यातायात निरीक्षक बी.बी. पांडेय, वरीय अनुभाग अभियंता (कार्य) तथा अवर अभियंता (स्टेशन विकास) द्वारा संयुक्त रूप से 46 दुकानों को हटाया गया था और इसकी रिपोर्ट मंडल मुख्यालय को भेजी गई थी। लेकिन अब जो तस्वीर सामने आई है, वह उस कार्यवाही को न केवल हास्यास्पद बनाती है, बल्कि रिपोर्ट की सच्चाई पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।
उच्चस्तरीय जांच की मांग
स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए कि आखिर 06 जून की कार्रवाई में क्या वास्तव में दुकानों को हटाया गया था या सिर्फ “कागजों की खानापूर्ति” कर रिपोर्ट भेज दी गई थी। यह भी पता लगाया जाए कि अवैध वसूली के इस खेल में किन-किन अधिकारियों की मिलीभगत है।