औरंगाबाद। नवबिहार टाइम्स संवाददाता
औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र में राष्ट्रीय जनता दल की जातिगत ध्रुवीकरण की राजनीति इस बार औरंगाबाद में सफल रही है। वहीं बीजेपी को भीतरघात से जबरदस्त नुकसान हुआ। चुनाव प्रचार के दौरान ही इस बात की चर्चाएं उठने लगी थी कि एनडीए के घटक दलों जदयू एवं लोजपा के स्थानीय नेता तथा खुद भारतीय जनता पार्टी के कई नेता पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह को हराने के लिए भीतरघात कर रहे हैं। भाजपा की राजनीति में आगे बढ़ने को इच्छुक भी सुशील सिंह की लगातार जीत से काफी परेशान थे और उन्हें लगा किया शायद अंतिम मौका है जब सुशील कुमार सिंह के विजय रथ को रोका जा सकता है। इसलिए भी जबरदस्त भीतरघात किया गया। बूथवार चुनावी आंकड़े इस बात के साफ संकेत दे रहे हैं।
1952 से औरंगाबाद संसदीय सीट से एक ही जाति- राजपूत समुदाय के उम्मीदवार चुनाव जीतते आ रहे हैं। इसलिए लोग इसे बिहार का चित्तौड़गढ़ भी कहते रहे हैं। 2019 में जब महागठबंधन ने यहां से गैर राजपूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा तो चित्तौड़गढ़ की अवधारणा के खिलाफ जबरदस्त जातीय ध्रुवीकरण हुआ, जिसकी परिणति 2024 में तब हुई जब राजद ने 2019 का प्रयोग दोहराया। गौरतलब है कि औरंगाबाद संसदीय सीट से चार बार (1998, 2009, 2014, 2019) सांसद रहे सुशील कुमार सिंह को इस बार फिर भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया था, जो राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार अभय कुमार सिंह कुशवाहा से 79111 मतों से चुनाव हार गए। सुशील कुमार सिंह को कुल 386456 मत मिले जबकि राष्ट्रीय जनता दल के अभय कुमार सिंह को 465567 मत मिले।
औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र की सभी 6 विधानसभा सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है और हार का अंतर उन सीटों पर ज्यादा है जो परंपरागत रूप से भाजपा का मजबूत गढ़ मानी जाती थीं। औरंगाबाद सीट पर भाजपा के लिए प्रचार करने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और यहां तक कि अमित शाह भी आए लेकिन भाजपा को यहां कोई फायदा नहीं मिल सका। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2020 से दक्षिण पश्चिम बिहार का इलाका महागठबंधन के लिए गढ़ साबित हो रहा है। विधानसभा चुनाव में भी एनडीए गठबंधन को इस पूरे इलाके में एक भी सीट नहीं मिली थी और यही स्थिति इस बार के लोकसभा चुनाव में भी है जहां आरा, बक्सर, सासाराम, औरंगाबाद, काराकाट और जहानाबाद के साथ पाटलिपुत्र सीट भी महागठबंधन के खाते में चली गई।
भाजपा के जिला अध्यक्ष मुकेश शर्मा ने कहा कि यह कटु सत्य है कि हम हारे हैं। इसमें किसी एक व्यक्ति को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा। परिणाम पर हम विचार करेंगे। उन्होंने माना कि हाल के वर्षों में दक्षिण पश्चिम बिहार में बड़ा सामाजिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जिसका सामना करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर रणनीति बनाने की जरूरत है।